Sunday, October 31, 2010

तुमने पिला दिया प्यार का जो प्याला
में हो गयी दीवानी  ए मेरे मौला
अब न भाये यह जग हंगामा
क्या अमर है और क्या है निश्छल
खूब मैंने जाना

अब में न चाहू रिश्तो के बंधन
कहो चाहे इन्हें किसी नाम से तुम
दोस्त, प्रेमी,  भाई  या मामा
अब तो  में मानु  सिर्फ  वो  ही रिश्ता 

जहा दिल से दिल की बात हो
न कुछ  पाने  की आस  हो

क्या है शोहरत क्या है कामियाबी
जहा दिल को सुकून हो की मैंने  फ़र्ज़ अदाया
में तो उसी संतोष्टि में  तृप्त  हो  जाऊ
अब न चाहू बहारी प्रशंसा
में क्या हु वोह में ही जानू

अब न सोचु की और क्या सोचे
अब ये चक्रवुयु मैंने  भेद  डाला

यह न सोचना की में बस सहती जाऊ
क्या सही है और क्या गलत है
यह फिर्क मैंने  जाना
अब तो में बोलू अडिग हो के
रख सच को सदा साथ
में यह खूब जानू  की जहा सच वह तुम 

अब तो हो गयी दीवानी  ए मौला
अब तो हो गयी दीवानी  ए मौला

2 comments:

Archana Bahuguna said...

Agar yeh tune likha hai toh meri toh death hi ho gayi :-)

Madhu said...

:)