Wednesday, November 09, 2011

प्यारी मेरी दुलारी

हे प्यारी, मेरी दुलारी, तुम क्यों हो सोचती
कि वक़्त बीत गया और अब तुम  न उड़ पावोगी

याद करो तुम अपने वो भोले  निर्मल सपने
जो लहरों  की तरह सीमा विहीन थे
जो तुम्हे कुछ भी है मुमकिन की सीख देते

माना की चाल है अब थोड़ी धीमी
पर मन अब  भी है बच्चे सा निर्मल 
जो  है जानता  सपनो की पतंगे  उडाना 
कटने पे नयी शुरुवात करना   

मत बांधो अपने पैरो में खुद ही बेडिया
तुम चलो  उन्मुक्त हो के

दो अपने सपनो को नए पंख
पूरी कायनात है तुम्हारे संग

3 comments:

Archana Bahuguna said...

By God! Kaviyitri ji! Salam aapko .. I am dumb founded but also inspired :). Maine bhi hindi mein likhne ka bohot socha but likhte hue maloom padha Hindi nahin aati ... :)Keep going! Loved "Why not this way" too...

Komila said...

amazing... yeh talent kahan chipa hua tha ?

loved it...really

Chaya Desai said...

Wah wah...aisa lag raha hain ki mera mann hi mujh se baatein kar raha hain...khub accha likha hain mohtarma!!!