Wednesday, November 28, 2012

रंगमंच


एक ही परिस्थिति को देखने के है कितने नज़रिए
हर नज़र  में है लिपटी मेरी अनुभूतियों और भावो के रंग
कुछ भी न देखता पूर्ण सफ़ेद रंग पृष्ठ भूमि  पर
अपनी ही बुद्धि की  सृष्टि पर अब आती है हँसी
एक दर्शक के रूप में देखती हू  नित नए  नाटक
अपने ही बनाएं  रंगमंच पर







3 comments:

Archana Bahuguna said...

Beautiful Madhu .. You are really inspiring me ... And inspiring me to write in Hindi too .. Beautiful a d so true..

Archana Bahuguna said...
This comment has been removed by the author.
Sunil Sood said...

Jeevan roopi Rangmanch ko Hindi me hi samajh sakte hain..