Thursday, April 23, 2009

रिश्ते
रिश्तों की कोई सीमा नहीं
यह तो एक पतंग की तरह बस बड़ी चली जाती है
ईसे तो बस एक पवन जैसे साथी की जरूरत है, जिसके साथ मिजाज़ अच्छे से मिलते हो
फिर किसे फिकर, किस ओउर चल दिए
फिर तो बस, यह सफर ही मंजिल हो जाता है
पर जहा रिश्तो में कुछ पाने की आस हो या अपनी इच्छा थोपने की लालसा
जहा किसी और की भावना का तिरस्कार हो
वोह रिश्ते दूर तक नहीं जा पाता
मनो पतंग उडाने वाले ने अपनी ही नासमझी से पतंग कटवा दी हो
कहते है एक पाक रिश्ते में ईशवर बसता है
शायद दुनिया में एक सच्चे रिश्ते से जादा अनमोल कुछ नहीं
और एक ख़राब रिश्ते से बड़ी सज़ा कोई और नहीं


4 comments:

Jaya said...

Beautifully written.. I completely agree with the last two lines...

Archana Bahuguna said...

Beautiful thoughts Madhu. The imagination of kite and wind is wonderful.

mrajshekhar said...

at last. in hindi. i can understand this stuff now. :-)

Anupam said...

Amazing writing Madhu! I never knew this side of your personality, deep thoughts wonderfully worded!